हिन्दू धर्म में यज्ञ का बड़ा महत्व है, हमारे प्राचीन वेदो और पुराणों में भी इसके बारे में बताया गया है | प्राचीन समय में किसी भी शुभ कार्य के प्रारम्भ से पहले यज्ञ किया जाता था, ताकि कार्य में किसी प्रकार का विघ्न ना आये | शास्त्रों में यज्ञ के 5 प्रकारो के बारे में बताया गया है | आज हम आपको उन्ही 5 यज्ञो के बारे में बताने जा रहे है, तो आइये जानते है | आज की इस पोस्ट में आपके लिए क्या ख़ास है |
ब्रह्मयज्ञ
प्राणी जगत में मनुष्य को सबसे उत्तम माना गया है | मनुष्य से ऊपर पितर है, अर्थात माता पिता और गुरुजन | पितरो से ऊपर है देव, और देवो से बढ़कर है, ईश्वर और ऋषिगण | यहाँ ईश्वर को ब्रह्म बताया गया है | ब्रह्मयज्ञ नित्य सन्ध्यावन्दन, स्वाध्याय और वेदपाठ करने से संपन्न होता है | इससे ऋषि ऋण चुकता है |
देवयज्ञ
सत्संग और अग्निहोत्र कर्म से देवयज्ञ संपन्न होता है | इसके लिए वेदी में अग्नि जलाकर होम किया जाता है, ये अग्निहोत्र यज्ञ भी कहलाता है | इसे करने के भी नियम है, जिनके अनुसार अग्निहोत्र यज्ञ संधिकाल में गायत्री छंद के साथ किया जाता है | इस हवन में 7 वृक्षों की लकड़ियां काम में ली जाती है | बता दे घर में किये जाने वाला यज्ञ देवयज्ञ हो होता है | ये हवन रोगो को मिटाता है, और सकारात्मकता को बढ़ाता है |
पितृयज्ञ
सत्य और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध कहलाता है और जिस कर्म से माता, पिता और आचार्य तृप्त हों वह तर्पण कहलाता है |
वेदो के अनुसार यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, माता-पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का भाव है | यह यज्ञ सम्पन्न होता है सन्तानोत्पत्ति से और इसी से ‘पितृ ऋण’ भी चुकता होता है |
वैश्व देवयज्ञ
यह यज्ञ भूतयज्ञ भी कहलाता है | प्रकृति के सभी प्राणियों और वृक्षों के प्रति करुणा दिखाना और उन्हें अन्न जल देना, भूतयज्ञ है | रसोई में बनने वाली हर चीज के थोड़े से अंश को उसी अग्नि में होम करे, जिसमे उसे बनाया गया है | और उसके कुछ अंश को गाय, कुत्ते और कौवे को दे | ये भूतयज्ञ कहलाता है |
अतिथि यज्ञ
अतिथि से अर्थ घर में आने वाले मेहमानो की सेवा करना है | अपंग, महिला, विद्यार्थी, सन्यासी, चिकित्सक और धर्म का कार्य करने वाले लोगो की सेवा करना ही अतिथि यज्ञ है | इसके अलावा ये एक सामाजिक कर्तव्य भी है |